पहचान -एक खोज



Hello Bloggers,
मैंने अपने सफर की शुरुआत पहचान बनाने के लिए की है। तो चलिए, शुरू से शुरू करते हैं।

पहली पहचान

मुझे नहीं मालूम कि मेरी पहली पहचान माँ-पिता के सामने किस रूप में आई थी।
पर आज की तकनीक के आधार पर सोचूं, तो शायद एक धागा या बिंदु के रूप में ही आया होऊँगा — और शायद वही मेरी पहली पहचान बनी।

एक सवाल

कहा जाता है कि माँ बच्चे को समाज से 9 महीने पहले जानती है — और शायद ये सच भी है।
पर क्या आपने कभी सोचा है, उस बिंदु या धागे को पिता किस रूप में महसूस करते होंगे?
शायद वो उसके दिमाग के किसी कोने में धीरे-धीरे आकार लेता होगा — एक उलझन या एक भावना बनकर।
(“उलझन” शब्द सही है या नहीं, मुझे पता नहीं — क्या आपके पास कोई बेहतर शब्द है?)

इन 9 महीनों की उस भावना के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं… क्या आपके पास हैं?
बताइएगा ज़रूर — आपके कमेंट का इंतजार रहेगा 

 पहचान की ये खोज शायद कभी पूरी न हो — पर मैं इसे महसूस करता रहूंगा, शब्दों में ढालता रहूंगा


अगर आप चाहें तो मैं इस पर आधारित अगला हिस्सा भी लिखने में आपकी मदद कर सकता हूँ —
क्या कहना चाहेंगे अगली पोस्ट में?

AB तैयार है साथ चलने के लिए! 😊✍️

Comments

  1. वाह भाई क्या बात कही है। माता-पिता के कर्ज़ को हम अपने फर्ज से ही भर सकते हैं। काबिले तारीफ 👌🏻👏🏻👏🏻

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